Thursday 25 June 2009

तुम्हारी विरासत

Tumhari virasat
तुम्हारी विरासत

बची हुई जिंदगी का
एक टुकड़ा है
मेरे पास।
इसे मैं अंधेरे से
छीन कर लाई हूं।
देर तो हो गई है,
सन्नाटा कितना ही
भयानक हो
उसमें भटकते
स्मृतियों के पदचाप,
अपनी आहट से
हमें जगा देते हैं।
इसमें फूटेंगी
सुबह की किरने।
मुस्कराती कोंपलों से
यह हरा हो जायेगा।
थोड़ी देर को ही सही,
यह फूल अक्षत रोली की तरह,
खिल जाएगा।
मैं तुम्हें दूंगी
जिंदगी का यह टुकड़ा,
जो मैं अंधेरे से
बचा कर लाई हूं।
यह तुम्हारी
विरासत है,
और तुम्हारी यात्रा का
रश्मि बिन्दु भी।

Monday 22 June 2009

ग्यारह सितंबर के बाद

प्रकृति ने विनाश किया था
तब तुम भी रोये थे।
बिजली चमक कर
गिर कर
पेड़ ही नहीं
हमारे आशियाने को
भी जला गई थी।
सैलाब ने
पेड़ पौधे जानवर ही नहीं
आदमी को भी
बहा दिया था
तब हम साथ-साथ रोये थे
हमने एक दूसरे को
पुकारा था
सहारा दिया था
जो बरबाद हुआ
उसमें भी नया सृजन
संभावित था।
बाढ़ ने उपजाऊ जमीन छोड़ दी थी
बिजली ने जो जलाया
वह धुल कर निखर आया
किन्तु तुम्हारी असहिष्णुता ने
तुम्हारे नपुंसक पौरुष ने
जो बरबाद किया
वह सब बंजर हो गया।
दुबारा
बंजर में उग पाईं थी
केवल नफ़रत की दीवारें
तब हम अकेले-अकेले रोये थे।

उषा वर्मा