Thursday, 30 April 2009

याचना

ह्रदय की वीथिका में,
साथ तुम चलते रहो।
आहत मन तुम्हें जब भी पुकारे
गीत बन ढलते रहो।
मन तिमिर में डूब कर,
ढूंढ़े सहारा जब कभी
तड़ित से चमक कर,
तुम प्रभा देते रहो।
और प्राची से कभी जब,
झांकता हो वह अरुण,
मुस्करा कर तुम सदा,
संकेत बस देते रहो।
किनारा मांगता है
कौन तुमसे,तीव्र झंझा में
सदा तुम संग रहो।

17 comments:

neera said...

आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है! आपको यहाँ पाकर बहूत ख़ुशी हो रही है और उससे अधिक आपकी कविता पढ़कर, जो अभी तक सुनी थी अब उन्हें जब मन करेगा तब पढ़ भी पाउंगी.. इंतज़ार रहेगा...

Udan Tashtari said...

आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.

-समीर-साधना

अनिल कान्त said...

आपकी कविता बहुत प्रभावशाली है ....आप बहुत अच्छा लिखती हैं
आपका और आपके ब्लॉग का स्वागत है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

अविनाश वाचस्पति said...

शुभकामनायें हमारी भी लो
और शुभकामनाओं पर एक
नई कविता लिख दो

राजेश स्वार्थी said...

बहुत बढ़िया कविता लगी. और भी पढ़वाईये.

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब।

रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में।
साथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगा।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलंू ऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)

dr. Chandrajiit Singh said...

ब्लौग गजगत में आप्का स्वागत है. क़ृपया पधारियेगा lifemazedar.blogspot.com, kvkrewa.blogspot.com, kvkrewamp.blogspot.com.
सादर
डॉ चंद्रजीत सिंह

अमिताभ said...

blogging jagat me aapka hradik abhinandan hai . prarambh hi utkrisht hai aasha karta hun aage bhi aisi hi umda rachnaye padhne ko miltate rahengi .

usha meri maa ka naam bhi hai so aap se vishesh lagav rahega .

sadar
amitabh

mastkalandr said...

और प्राची से कभी जब,
झांकता हो वह अरुण,
मुस्करा कर तुम सदा,
संकेत बस देते रहो। वाह .. वाह बहुत खूब .., लब्ज़ और लब्जों का प्रयोग काबिले तारीफ है .
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है.नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं. ..मक्

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आपकी कविता सुन्दर लगी। आपका लिखने की शैली भी बडी सुन्दर एवम रोचक लगी। बधाई।

हे प्रभु यह तेरापथ
मुम्बई टाईगर

amar barwal 'Pathik' said...

कहा दीवार के कोने नें दूजे कोने से,
कुछ नहीं होता युं बेज़ार् खड़े होने से।
माना तुम मुझ से थोड़ी दूर सही,
हां मगर इतने भी मज़बूर नहीं।
आओ। दीवारों से दोस्ती कर लें,
प्यार से उन को बाहों में भर लें,
सुना है उन के भी कान होते हैं,
चलो। कुछ् उन से गुफ्त-गू कर लें।
सुन्दर सी रचना के लिये साधू-वाद्

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आपकी याचना पसन्द आई। आपने अच्छा लिखा मेरे ब्लोग पर आने की जहमत उठाए। आपका स्वागत है।

पूनम श्रीवास्तव said...

और प्राची से कभी जब,
झांकता हो वह अरुण,
मुस्करा कर तुम सदा,
संकेत बस देते रहो।

Adarneeya Usha ji,
bahut sundar bhavpoorna kavita.kam shabdon men sundar abhivyakti.
Poonam

के सी said...

आंटी क्या बात आप तो छा गयी हैं अपनी कविता के साथ दिल पर, आशीर्वाद बनाये रखिये

डा. अमर कुमार said...

निश्चय ही एक अरसे तक याद आती रहेगी,
कोमलता से लबरेज़ यह कविता !

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....