शुभ कामनाएं
मधुमय उपवन में
पंछी युगल बन तुम रहो।
स्नेह की झिलमिल अरुणिमा
पथ प्रशस्त करती रहो।
चित्र बनते जा रहे हैं
तूलिका थकती नहीं।
चांदनी को एक टुकड़ा
बन सदा झरती रहो।
राह कितनी हो कठिन
धूप कितनी तेज़ हो।
स्निग्ध मानव मन तुम्हारा
बस साथ तुम चलती रहो।
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2 comments:
राह कितनी हो कठिन
धूप कितनी तेज़ हो।
स्निग्ध मानव मन तुम्हारा
बस साथ तुम चलती रहो।
-बहुत सुन्दर भाव लिए एक उम्दा रचना. आपकी प्रस्तुति देख मन प्रफुल्लित हो गया. बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आपकी रचना बहुत पसंद आई. आपको बहुत बधाई.
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