Monday, 18 May 2009

कली और फूल

कली और फूल

कली जब तक
कली रहती है
वह नारी बनी रहती है।
लेकिन फूल खिलते ही
पुरुष बन जाता है ।
होते यदि
कामता प्रसाद गुरु,
ज़िन्दा ,तो उनसे पूछती ,
कली और फूल का.
यह व्याकरण कैसा ?

2 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

सच में ??....सही कहा आपने...पुनर्व्याख्या की जरुरत है..

Udan Tashtari said...

भीतर तक झंकझोरती और अनेक प्रश्न उठाती रचना. बधाई.