तुम साथ थे हमारे
माना कि ग़म बहुत थे,
रस्ते बड़े कठिन थे,
लेकिन यही क्या कम था
तुम साथ थे हमारे।
झंझा उठा भयानक,
तूफ़ां से घिर गये हम
छूटा कहां किनारा,
कुछ भी न देख पाये,
बिजली चमक के सहसा ,
दिखला गई नये किनारे।
तुम साथ थे हमारे ।
मांगा कहां था हमने,
सूरज की रोशनी को.
मांगा कहां था हमने ,
चाँदी सी चाँदनी को,
अम्बर की चाह क्या है,
दे दो मुझे तुम मेरे ,
सारे क्षितिज अधूरे।
तुम साथ थे हमारे।
समतल धरा जो होगी
हम साथ ही चलेंगे
हाथों में हाथ लेकर,
कुछ गुनगुना भी लेंगे,
ठोकर लगे जो साथी,
झुककर मुझे उठाना,
देना नये सहारे।
तुम साथ थे हमारे।
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4 comments:
तुम साथ थे हमारे- एक विश्वास, एक सहजता का भाव!! बहुत उम्दा अभिव्यक्ति! बधाई.
बहुत खूब। सचमुच -
सुजन स्वजन का साथ अगर हो दुर्गम राह सुगम हो जाये।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
aap ki kavita ne man ko chho liya
सुंदर अभिव्यक्ति,
आप अच्छा लिखते हैं ,आपको पढ़कर खुशी हुई
साथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है ,
यूँ ही लिखते रही हमें भी उर्जा मिलेगी ,
धन्यवाद
मयूर
अपनी अपनी डगर
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