क्या तुम्हें मालूम है?
तुम्हारे आते ही,
बेला महक उठा
चारों तरफ़ से मेघ घिरे आकाश में ,
एक ध्रुव तारा चमक उठा ।
हिम खंड पिघल कर, विस्तार पा गया।
खेत खलिहानों में समा गया।
इच्छाओं आकांक्षाओं के
तमाम पौधे लहलहा उठे।
अग्निबाहु फैल कर तपिश के,
तमाम राज़ खोल गया।
और फिर तुम्हारे जाते ही,
गुलाब की अरुणिमा,
मेरी आंखों मे बिछ गई,
उस दिन जो संपूर्ण लगा था,
वह रिक्त कलश सा ढरक गया।
क्यों ?
तुम्हें मालूम है क्या?
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8 comments:
Waah !! Komal bhavon ki sundar abhivyakti..
bahut sunder abhivyakti hai jo dharak jata hai vo kaun dekh pata hai
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है..
sundar aur prabhvee rachna
बहुत ही सुन्दर रचना . पढ़कर मन प्रसन्न हो गया . आभार.
बेहद खूबसूरत रचना है।
उषा जी
अभिवंदन
"क्या तुम्हें मालुम है " रचना पढ़ी
इतनी संयत और आदर्श शब्दावलि में लिखी गयी श्रांगारिक रचना वर्तमान में विरली ही देखने मिलती हैं
हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारें.
- विजय
बहुत जीवंत अहसास!! सुन्दर रचना.
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