Thursday, 25 June 2009

तुम्हारी विरासत

Tumhari virasat
तुम्हारी विरासत

बची हुई जिंदगी का
एक टुकड़ा है
मेरे पास।
इसे मैं अंधेरे से
छीन कर लाई हूं।
देर तो हो गई है,
सन्नाटा कितना ही
भयानक हो
उसमें भटकते
स्मृतियों के पदचाप,
अपनी आहट से
हमें जगा देते हैं।
इसमें फूटेंगी
सुबह की किरने।
मुस्कराती कोंपलों से
यह हरा हो जायेगा।
थोड़ी देर को ही सही,
यह फूल अक्षत रोली की तरह,
खिल जाएगा।
मैं तुम्हें दूंगी
जिंदगी का यह टुकड़ा,
जो मैं अंधेरे से
बचा कर लाई हूं।
यह तुम्हारी
विरासत है,
और तुम्हारी यात्रा का
रश्मि बिन्दु भी।

5 comments:

M Verma said...

nutan bhavabhivyaki kee sarthak aur anubhuti kee bahut sunder kavita.
bahut khoobsurat

Gyan Darpan said...

बहुत बढ़िया !

विवेक रस्तोगी said...

बहुत अच्छी कविता।

Udan Tashtari said...

यह तुम्हारी
विरासत है,
और तुम्हारी यात्रा का
रश्मि बिन्दु भी।

-बहुत गहरी बात कही है!!

neera said...

बेहद सुंदर!