Thursday, 2 July 2009

मैने एक सपना देखा था

मैने एक सपना देखा था.
एक सपना जो ख़ुद-ब-ख़ुद
अपने पैरों चल कर आया था।
मैने उसे नहीं बुलाया था।
उस सपने का न कोई
मजहब था ,
न कोई वतन था,
न कोई रूप- रंग था।
यह महज़ यादों का एक सिलसिला था।

1 comment:

neera said...

वाह! ऐसे सपने सभी देखने लगे तो अमन और शान्ति सपनो में नहीं, सीमाओं और सडकों पर नज़र आएगी