Friday 10 July 2009

प्यार

प्यार मुक्ति है
बंधन हीन,स्वतंत्र,
उतार केंचुली,
निरवस्त्र,बाधा नहीं,
पारदर्शी अरहस्य।
प्यार
एक समर्पण है,
अबाध आकर्षण,
मिटने में ही जीवन,
निःशब्द अबंधन।
प्यार
मीरा सी दीवानी,
तर्क नहीं केवल पूजन,
राधा बंशी की अनुगामी।
प्यार,
शक्ति है
अजेय जया सी,
अंग अंग पुलकित,
अपराजित दुर्गा सी।

5 comments:

श्यामल सुमन said...

भाव बहुत अच्छा लगा कहा जिसे है प्यार।
प्यार यही जो चल रहा यह जीवन संसार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

M VERMA said...

प्यार,
शक्ति है
अजेय जया सी,
बहुत सुन्दर -- प्यार भरी रचना

mehek said...

प्यार,
शक्ति है
अजेय जया सी,
अंग अंग पुलकित,
अपराजित दुर्गा सी।
sunder abhivyakti

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर परिभाषित किया है!! बधाई.

ओम आर्य said...

प्यार इसी को कहते है .................और क्या कहे जिन्दगी मे एक मात्र प्यार ही जीने की उर्जा देता है ............पर वह सच्चा है तो लोक परलोक से परे है ........सही कहा है आपने