आवश्यक है कि मैं लिखूं.
तुम्हारे जन्म दिन की तारीख़,
मालूम ही न पड़ा
कि यह बदली कब उमड़ी,
और कब शब्द झंझावात बन उसे ले उड़े।
कहां बरस कर वुलवुले फट पड़े।
हरी हो गई सूखी दरार पड़ी धरती
उसने भी नहीं बताया पता
उन बादलों का,
तुम्हारा जन्म दिन उसे भी याद नहीं था।
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2 comments:
वाह!
नई रचना देखकर खुशी हुई!!
बहुत सुंदर!बहुत सुंदर! लगातार ब्लॉग पर आती रहिये!
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