Saturday, 27 February 2010

शब्द

शब्द ,तुम सूर्य के वंशधर
नचिकेता की अग्नि तुम्हीं,
तुम्हीं मेरी आकांक्षा के आकाश।
शब्द तुम कस्तूरी का सुवास
पागस करती रही सदा
जीवन भर जंगल जंगल
रही भटकती मैं अभिशापित
सूर्य तुम ज्योति-पुंज के हस्ताक्षर
मेरे जीवन का उल्लास
ठगा सा खोया
सोया था चुपचाप
जान न पाई
वह सब क्या था। बेचैन बना जाती,
शब्द तुम जीवन के सहचर।
तुमको पाने की आकांक्षा में
चलूं निरंतर,करूं वंदना तेरी सस्वर।
अजर अमर तुम,
बहुआयामी अर्थ के पक्षधर
शब्द तुम लीलाधर।

3 comments:

Randhir Singh Suman said...

होली की शुभकामनाएं .nice

Udan Tashtari said...

शब्द...महिमा अनन्त!!


सुन्दर रचना!

Mithilesh dubey said...

आपको होली की बहुत-बहुत बधाई ।