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बेटी, तुझे घर से बिदा किया था
लेकिन एक सशक्त हाथों में सौंप कर।
उस समय तूने पूछा था,
वहां कौन है मेरा?
न बन्धु न बान्धवी
न तुम न पिता,न भाई न बहन।
मैने कहा था सब कुछ वहीं है,
समझाया था, आंसू पोछे थे तेरे।
तेरी गोद भर कर,
नन्हां सा टीका लगा कर,
कहा था, अब वही है घर तेरा।
पर बेटी,इतनी दूर
विदेश!
किस हृदय से आज दूं तुझे विदा।
विदेश में क्या है?
कौन है तूने तो मुझसे
पूछा नहीं दुबारा।
आज मैं पूछती हूं
बेटी, सवाल तेरे तुझसे ही करती हूं।
वहां कोन है तेरा?
न बन्धु न बान्धवी न मैं न तेरा पिता,
न बहन न भाई।
आज मेरी रानी बेटी, तू
मुझको समझा दे,कुछ कह दे
कैसे दूं तुझे बनवास।
जानती हूं जवाब नहीं तेरे पास।
तेरी गोदी में डालती हूं शुभ कामनाएं।
जहां भी रहे तू फले फूले,
पराए पेड़ में ही सही, तू झूला झूले।
मेरी बेटी देश की माटी
माथे पर लगा ले।
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2 मां की पुण्य-स्मृति पर
मां बन कर मैने
मन तेरा पहचान लिया
क्या होती है मां की ममता
क्षण भर में यह जान लिया।
मां तुमने क्या नहीं दिया
प्यार दिया, ममता का संसार दिया
हम सबके सुख पर तुमने,
अपना सब कुछ वार दिया
मन होता है, दुख की इस बेला,
में पास तुम्हारे आऊँ,पर
सात समुद्रों का यह दूरी
तुम्हीं कहो, कैसे तय कर पाऊं।
होते पंख अगर मुझको
चिड़िया सी उड़ कर आ जाती।
दुबक तुम्हारी गोदी में
जीवन का सब सुख पा जाती।
मैं तुमको क्या दे दूं मां,
अक्षर का यह बोध तुम्हीं से पाया,
हाथ पकड़ कर लिखना भी
तो तुमने ही सिखलाया।
अर्पण है शब्दों की यह माला,
स्वीकार इसे कर लेना
हाथ उठा कर एक बार
फिर सुखी रहो कह देना
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1 comment:
दोनों हृदय स्पर्शी रचनाएँ...
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